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किसान मार्च: सीमाएं सील करने और इंटरनेट निलंबन के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका

किसान संगठनों के दिल्ली कूच के मद्देनजर हरियाणा सरकार द्वारा सीमाएं सील करने और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं ठप करने को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

Faizan mohammad 1 year ago 0 6

किसान संगठनों के दिल्ली कूच के मद्देनजर हरियाणा सरकार द्वारा सीमाएं सील करने और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं ठप करने को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

किसान नेता उदय प्रताप सिंह ने अपनी याचिका में अदालत से इन सभी कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग की है, साथ ही आरोप लगाया है कि ये किसानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं और “असंवैधानिक” हैं। याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होने की संभावना है।

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने 13 फरवरी को दिल्ली कूच करने की घोषणा की है, ताकि केंद्र से फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला कानून बनाने सहित कई मांगों को स्वीकार करवाया जा सके।

याचिका में पंचकूला, हरियाणा के रहने वाले श्री सिंह ने हरियाणा के अधिकारियों द्वारा “स्पष्ट रूप से किसानों को शांतिपूर्वक इकट्ठा होने और विरोध करने के संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने से रोकने के उद्देश्य” से शंभू (अंबाला के पास) पर हरियाणा और पंजाब के बीच सीमा को “अवैध रूप से” सील करने का आरोप लगाया है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं और थोक एसएमएस को निलंबित करने सहित हरियाणा अधिकारियों के कार्यों ने स्थिति को और बदतर बना दिया है, जिससे नागरिकों को सूचना और संचार के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

याचिका के अनुसार, “सड़क जाम न केवल निवासियों को असुविधा पहुँचाता है, बल्कि एम्बुलेंस, स्कूल बसों, पैदल चलने वालों और अन्य वाहनों के आवागमन में भी बाधा डालता है। इस रुकावट के कारण वैकल्पिक मार्गों पर यातायात बढ़ गया है, जिससे वकीलों, डॉक्टरों और आपातकालीन सेवाओं जैसे पेशेवरों को अपने कार्यस्थलों तक पहुंचने और तत्काल उपस्थित होने में देरी और कठिनाई हो रही है।”

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अंबाला और कैथल जिलों में सीआरपीसी की धारा 144 लगाने के साथ-साथ विभिन्न सड़कों पर सीमेंटेड बैरिकेड्स, स्पाइक स्ट्रिप्स और अन्य बाधाओं को लगाना राज्य अधिकारियों द्वारा “असहमति को दबाने और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को दबाने” का एक ठोस प्रयास है।

याचिका में कहा गया है कि ये कार्रवाई न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि लोकतंत्र और कानून के शासन के सिद्धांतों को भी कमजोर करती हैं।



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