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China

After multiple attacks, China hires private agency to secure assets overseas

यह रूस की एक प्राइवेट मिलिट्री कंपनी, वैग्नर ग्रुप के समान हो सकती है, जो 2023 तक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी सहयोगी येवगेनी प्रिगोझिन के नियंत्रण में थी। इस समूह ने रूसी सशस्त्र बलों के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया।

Aarti Sharma 1 year ago 0 12

कई हमलों के बाद, चीन ने विदेशों में संपत्ति की सुरक्षा के लिए निजी एजेंसी को काम पर रखा

यह रूस की एक प्राइवेट मिलिट्री कंपनी, वैग्नर ग्रुप के समान हो सकती है, जो 2023 तक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी सहयोगी येवगेनी प्रिगोझिन के नियंत्रण में थी। इस समूह ने रूसी सशस्त्र बलों के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया।

चीन अब अपने विदेशी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए एक निजी सुरक्षा कंपनी को काम पर रख रहा है! साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह खासकर पश्चिम एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे भौगोलिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में किया जा रहा है।

यह कदम संभवतः चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए भी उठाया गया है। बीआरआई परियोजना में चीन द्वारा अन्य देशों में बुनियादी ढांचे के निर्माण और व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास शामिल है।

चीन का यह कदम रूस की एक प्राइवेट मिलिट्री कंपनी वैग्नर ग्रुप के समान हो सकता है। साल 2023 तक, इस ग्रुप का नेतृत्व रूस के राष्ट्रपति पुतिन के करीबी मित्र येवगेनी प्रिगोझिन करते थे। यह ग्रुप रूस की सेना के बुनियादी ढांचे, जैसे हथियार, वाहन और ट्रेनिंग आदि का इस्तेमाल करता था।

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चीन विदेशी संपत्तियों की रक्षा के लिए निजी सुरक्षा कंपनियों का रुख कर रहा है

चीन विदेशों में अपने व्यापक हितों की रक्षा के लिए एक नए रास्ते पर चल रहा है। दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन अब एक निजी सुरक्षा कंपनी को काम पर रख रहा है, खासकर पश्चिम एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे भौगोलिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में अपनी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए।

चीन के विदेशी व्यापारिक साम्राज्य का आ

यह कदम आश्चर्यजनक नहीं है, यह देखते हुए कि चीन का विदेशों में एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य है। 2022 के आंकड़ों के अनुसार, चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 190 देशों में 47,000 से अधिक विदेशी कंपनियां हैं। ये कंपनियां मुख्य रूप से ऊर्जा, खनन, बुनियादी ढांचा निर्माण और विनिर्माण में काम करती हैं। कुल मिलाकर, ये कंपनियां लगभग 41 लाख लोगों को रोजगार देती हैं, जिनमें 25 लाख विदेशी नागरिक शामिल हैं।

ठीक है, चलिए “वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी” के बारे में बात करते हैं! यह चीन की विदेश नीति का एक नया रुख है जो पिछले कुछ वर्षों में काफी चर्चा में रहा है। इसे समझने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि ये नाम कहां से आया है।

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वुल्फ वारियर का मतलब होता है भेड़िया योद्धा

ये नाम एक चीनी फिल्म सीरीज से लिया गया है, जिसमें चीनी सैनिकों को विदेशों में चीनी हितों की रक्षा करते हुए दिखाया गया है। ये फिल्में काफी लोकप्रिय हैं और चीन में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।

तो, असल में वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी क्या है?

इसका मतलब है कि चीन अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर ज्यादा मुखर और आक्रामक हो रहा है। वो अपने हितों की रक्षा के लिए कड़ा रुख अपना रहा है और विरोध करने वालों के सामने झुकने को तैयार नहीं है। ये पारंपरिक चीनी कूटनीति से काफी अलग है, जो आमतौर पर शांत और समझौता करने वाली मानी जाती थी।

पहले के राष्ट्रपति हू जिंताओ के समय, चीन के विदेशी राजनयिक विदेशों में ज्यादा दिखाई नहीं देते थे। वो आमतौर पर शांत रहते थे और विवादों से बचने की कोशिश करते थे।

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लेकिन जब शी जिनपिंग राष्ट्रपति बने, तो चीन की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आया। जिनपिंग ने देश के अंदर और बाहर के मुद्दों को सुलझाने के लिए ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाया। वो चीन के हितों की रक्षा के लिए मजबूती से खड़े होते हैं और विरोध करने वालों से नहीं डरते।

इसी आक्रामक रवैये को “वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी” कहा जाता है। यह नाम 2015 और 2017 में आईं दो चीनी एक्शन फिल्मों “वुल्फ वारियर” और “वुल्फ वारियर 2” से लिया गया है। इन फिल्मों में दिखाया जाता है कि कैसे चीनी सैनिक अपने देश को पश्चिमी देशों के गुंडों से बचाते हैं।

तो, अब आप समझ गए होंगे कि ये नाम कहां से आया और किस तरह की डिप्लोमेसी को दर्शाता है। अभी जानते हैं कि ये चीन की विदेश नीति को कैसे बदल रहा है:

वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी चीन की नई विदेश नीति है, जो आलोचनाओं का मजबूती से सामना करती है और विरोध करने से नहीं झिझकती। सी राजा मोहन के इंडियन एक्सप्रेस अखबार के लेख के मुताबिक, इस रणनीति में चीन के राजनयिक:

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  • आलोचनाओं का सीधा मुकाबला करते हैं: किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन के खिलाफ उठाई गई आवाज का मुंहतोड़ जवाब देते हैं।
  • मेजबान सरकारों को उपदेश देते हैं: जिन देशों में वो तैनात होते हैं, उनकी सरकारों को सलाह देते हैं और कभी-कभी उनकी बात न भी मानते हैं।
  • सम्मन का जवाब ना देना: विदेश मंत्रालयों द्वारा बुलाए जाने पर कभी-कभी नहीं जाते हैं।

ये रवैया भारत के साथ भी देखा गया है, खासकर डोकलाम और लद्दाख के हालिया विवादों के दौरान।

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