- 1960 के सिंधु जल संधि के तहत रावी नदी के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार।
- जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद के कारण 45 साल से रुका हुआ था शाहपुर कंडी बांध का निर्माण।
- अब इस बांध के बनने से जम्मू-कश्मीर के कठुआ और सांबा जिलों को होगा सिंचाई का लाभ।
भारत ने 45 साल से अधूरे पड़े शाहपुर कंडी बांध को पूरा कर लिया है, जिसके ज़रिए रावी नदी का पानी पाकिस्तान जाने से रोका जा सकेगा। 1960 में हुए सिंधु जल संधि के तहत रावी, सतलुज और व्यास नदियों के पानी पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार है।
पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित शाहपुर कंडी बांध का निर्माण जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच हुए एक विवाद के कारण रुका हुआ था। इस विवाद के कारण ही भारत को प्राप्त होने वाला रावी नदी का एक बड़ा हिस्सा इतने सालों तक पाकिस्तान जाता रहा।
1979 में, जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और पंजाब के उनके समकक्ष प्रकाश सिंह बादल के बीच रणजीत सागर बांध और उसके नीचे शाहपुर कंडी बांध बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1982 में इस परियोजना की आधारशिला रखी थी और इसे 1998 तक पूरा करने की उम्मीद थी। हालांकि, रणजीत सागर बांध का निर्माण 2001 में पूरा हो गया, लेकिन शाहपुर कंडी बांध का निर्माण रुका रहा और रावी नदी का पानी पाकिस्तान जाता रहा।
2008 में शाहपुर कंडी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था, लेकिन निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ। विडंबना यह है कि 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच फिर से विवाद के कारण परियोजना फिर से रुक गई।
आखिरकार, 2018 में केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया और दोनों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इसके बाद जल्द ही काम शुरू हुआ और अब यह पूरा हो चुका है।
पाकिस्तान को जाने वाला पानी अब जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख जिलों – कठुआ और सांबा – की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। 1150 क्यूसेक पानी अब केंद्र शासित प्रदेश में 32,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करेगा।
जम्मू-कश्मीर को बांध से उत्पादित जल विद्युत का 20 प्रतिशत भी प्राप्त होगा।
55.5 मीटर ऊंचा शाहपुरकंडी बांध एक बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का हिस्सा है जिसमें कुल 206 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली दो जल विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं। यह रणजीत सागर बांध परियोजना से 11 किलोमीटर नीचे रावी नदी पर बनाया गया है।