जैसा कि देश प्राचीन शहर में समारोह का गवाह बन रहा है, यहां एक नजर है कि कैसे 500 साल का विवाद अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में परिणत हुआ।
अयोध्या में आज एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया! 400 से अधिक स्तंभ, 44 दरवाजे और भगवान राम की एक नई मूर्ति के साथ ये मंदिर देशभर में श्रद्धालुओं के दिलों में एक खास जगह बना चुका है।
आज का ये दिन 500 साल से चले आ रहे एक विवाद का सुखद अंत है। 1528 से लेकर 1992 तक विवाद, हिंसा, और अनिश्चितता का दौर चला। लेकिन अब भगवान राम अपने घर लौट आए हैं। सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बाद 2024 में पूरा हुआ ये मंदिर, देशवासियों के धैर्य और श्रद्धा का प्रतीक बन गया है।
अयोध्या राम मंदिर का इतिहास: विवाद की जड़ें (1528-1751)
1528: राम मंदिर विवाद की शुरुआत: अयोध्या में राम जन्मभूमि पर 1528 में मुगल बादशाह बाबर के एक सिपहसालार मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस मस्जिद के स्थान पर पहले एक राम मंदिर था। यही इस 500 साल पुराने विवाद की जड़ है।
1751: मराठाओं का दावा: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद बलबीर पुंज अपनी किताब ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकोलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ में लिखते हैं कि 1751 में मराठों ने अयोध्या, काशी और मथुरा को अपने अधीन करने का दावा किया था। इससे इन पवित्र नगरों को लेकर विवाद और बढ़ गया।
अयोध्या विवाद की लपटें भड़कातीं निहंग सिख! (1858)
1858 में अयोध्या राम मंदिर विवाद में एक नया अध्याय जुड़ा, जब निहंग सिखों ने बाबरी मस्जिद को भगवान राम की जन्मस्थली घोषित करने की कोशिश की। उन्होंने मस्जिद में हवन किया और वहां भगवान राम का झंडा लगाया।
1858 में सिखों का दावा और 1885 में पहला मुकदमा: अयोध्या विवाद सुलगे
1858: सिखों की दखल: अयोध्या के विवादित स्थल को लेकर तनाव 1858 में और बढ़ गया, जब निहंग बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 25 सिखों ने कथित तौर पर मस्जिद परिसर में घुसपैठ की और दावा किया कि यह स्थान भगवान राम का जन्मस्थान है। उन्होंने मस्जिद में हवन किया और झंडा लगाया। इस घटना ने हिंदू-मुस्लिम तनाव और राम मंदिर आंदोलन को नया जोश दिया।
1885: पहला मुकदमा: अयोध्या विवाद पर पहला कानूनी दावा 1885 में पेश किया गया। निर्मोही अखाड़े के पुजारी रघुबर दास ने मस्जिद के बाहरी प्रांगण में मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी। हालांकि मुकदमा खारिज हो गया, लेकिन इसने एक कानूनी आधार तैयार किया और विवाद को जिंदा रखा।
ब्रिटिश का समाधान: उस समय अंग्रेज प्रशासन ने विवादित स्थल के चारों ओर बाड़ लगाकर हिंदू और मुस्लिमों के अलग-अलग पूजा स्थल तय कर दिए। यह व्यवस्था लगभग 90 सालों तक चली।
1949: अयोध्या विवाद में बड़ा मोड़ – बाबरी मस्जिद में ‘राम लला’ की मूर्तियां!
22 दिसंबर, 1949 की रात अयोध्या के इतिहास में एक बड़ा बदलाव लाने वाली थी। इस रात कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के अंदर ‘राम लला’ की मूर्तियां रख दीं। इस घटना से धार्मिक भावनाएं और तेज हो गईं और पूजा स्थल के स्वामित्व को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई।
1949: विवाद और जटिल: बाबरी मस्जिद में ‘राम लला’ की मूर्तियों के प्रकट होने से 1949 में विवाद का एक नया अध्याय शुरू हुआ। हिंदू मानते थे कि मूर्तियां “प्रकट” हुईं, जबकि मुसलमानों ने इसे मस्जिद की पवित्रता का भंग माना। इस घटना के बाद पहली बार विवाद संपत्ति विवाद के रूप में अदालत पहुंचा।
1950-1959: मुकदमों की बाढ़: अगले दशक में विवाद और जटिल होता गया। निर्मोही अखाड़े ने मूर्तियों की पूजा का अधिकार मांगा, और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पूरे स्थल पर कब्जे का दावा किया। मुकदमों की संख्या बढ़ती गई, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला।
1986-1989: ताले खुले, तनाव बढ़े: 1986 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौर में बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का विवादित फैसला लिया गया। इससे हिंदू मस्जिद के अंदर पूजा कर सकते थे। इस फैसले ने तनाव और बढ़ा दिया, और राम जन्मभूमि आंदोलन को नया जोश दिया।
1990 में अयोध्या राम मंदिर मुद्दे पर बड़ा उबाल आया। उस साल विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने मंदिर निर्माण की समयसीमा तय कर दी, जिससे मंदिर की मांग और तेज हो गई। उसी साल बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा शुरू की, जिसका मकसद मंदिर निर्माण के लिए जनसमर्थन जुटाना था।
इस समय देश में मंडल कमीशन के लागू होने से सियासी तनाव भी बढ़ा हुआ था। आडवाणी की रथ यात्रा ने ऐसे माहौल में राम जन्मभूमि को “मुक्त” करने का नारा बुलंद किया। हालांकि मस्जिद को गिराने का प्रयास विफल रहा, लेकिन इस रथ यात्रा को राम मंदिर आंदोलन का एक अहम मोड़ माना जाता है।
1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस – एक काला अध्याय
1992 का साल अयोध्या विवाद में एक भयावह मोड़ लेकर आया। इसी साल हिंदू कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को दिए आश्वासनों के बावजूद बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।
विध्वंस का दिन: 6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में कारसेवक (हिंदू कार्यकर्ता) अयोध्या पहुंचे और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। यह घटना सांप्रदायिक तनाव की चरम थी, जिसने पूरे देश को शर्मसार कर दिया।
हिंसा का तांडव: मस्जिद के विध्वंस के बाद देशभर में भयंकर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। मुस्लिम और हिंदू समुदायों के बीच हिंसा हुई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ। सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में मुंबई, सूरत और भोपाल शामिल थे।
सरकार का कदम: 1992 में मस्जिद विध्वंस के बाद, केंद्र सरकार ने विवादित इलाके को अपने अधीन ले लिया। इस फैसले को डॉ. इस्माइल फारुकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
1994 का फैसला: 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया। इस फैसले ने मामले में सरकारी भूमिका को और मजबूत कर दिया।
खुदाई और सुनवाई: 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल के स्वामित्व के मामले की सुनवाई शुरू की। उसी दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुदाई की और दावा किया कि मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर के अवशेष मिले हैं।
कानूनी लड़ाई जारी रही.
2009-10: लिब्रहान रिपोर्ट प्रस्तुतीकरण 16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद, लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस के जटिल विवरणों का खुलासा किया गया और प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया।
बहुत पहले 2009 में एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें बीजेपी के कुछ नेताओं का नाम आया कि उनकी वजह से ये मसला और बढ़ा।
फिर 2010 में हाई कोर्ट ने कोशिश की कि विवाद सुलझे, इसलिए जमीन का एक हिस्सा हिंदुओं को, एक मुसलमानों को और बाकी निर्मोही अखाड़े को दे दिया गया। पर सबको ये रास्ता मंजूर नहीं हुआ और मामला कोर्ट में चलता रहा।
आखिरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया! उन्होंने विवादित जमीन हिंदुओं को मंदिर बनाने के लिए दे दी और मुसलमानों को दूसरी जगह मस्जिद बनाने के लिए जमीन दी।
2020 में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने बाबरी मस्जिद वाली ही जगह पर भव्य राम मंदिर का शिलान्यास किया। एक पूजा के जरिए मंदिर निर्माण का रास्ता खुल गया, और कई सालों की कानूनी लड़ाई थम सी गई।
2024 में 22 जनवरी को उसी नए मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की, यानी मूर्ति को पूजा के योग्य बनाया। ये दिन देश के करोड़ों राम भक्तों के लिए बड़ी खुशी का मौका था!