बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन पर ‘एकला चलो’ का नारा बुलंद करते हुए 2024 के लोकसभा चुनावों में अकेले उम्मीदवार के रूप में उतरने का ऐलान किया है। इसके पीछे के समीकरण को समझने के लिए देखते हैं:
मायावती का प्रभाव भाजपा और कांग्रेस पर:
मायावती ने दलितों, वंचितों, आदिवासियों, और अल्पसंख्यक समुदायों को जोड़ने के लिए बसपा को मजबूत करने का आह्वान किया है। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने सीधे रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) को निशाना बनाया है, लेकिन भाजपा का नाम नहीं लिया। इसमें जुड़े विभिन्न विचार बताए जा रहे हैं, जैसे कि मुस्लिम महिलाओं को मुफ्त राशन का वादा करना।
गठबंधन क्यों नहीं किया?
मायावती ने गठबंधन के लिए सार्वजनिक रूप से तैयार नहीं होने की वजह से इन घटनाओं को बाधित किया है। उनका दावा है कि सभी पार्टियां अब तक जातिवादी सोच से बाहर नहीं निकली हैं और इससे उन्हें नुकसान हुआ है। इससे बसपा को चुनावों में नुकसान हो सकता है या फिर किसी पार्टी को फायदा हो सकता है।
फायदा I.N.D.I.A को या भगवा दल को?
यूपी में जातिवाद को ध्यान में रखकर, दलित, मुस्लिम, और ओबीसी वोटों की महत्वपूर्णता को समझना महत्वपूर्ण है। इस ऐलान से दिखता है कि विरोधी वोट से भाजपा को कुछ लाभ हो सकता है और उनकी पोजीशन में सुधार हो सकता है। दलित और मुस्लिम वोटरों का बंटवारा हो सकता है, जिससे विपक्ष कमजोर हो सक
सकता है। इससे भाजपा को अच्छी पोजीशन मिल सकती है और वे विभिन्न समूहों के बीच विभाजन का उपयोग कर सकती है।
मुकाबले में दलित वोट:
दलित वोट के मुकाबले में मायावती के अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय, विपक्ष के गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है। वह अपने वोटरों को गठबंधन में हमेशा नुकसान होता देख रही है, और इसलिए गठबंधन के साथ जाने से इनकार कर रही है।
विचार करें बहन जी:
इसके बावजूद, कांग्रेस ने अपनी चिंता व्यक्त की है और गठबंधन की अपील की है। यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता ने मायावती से गठबंधन में शामिल होने की अपील की है और उनसे पुनर्विचार करने के लिए कहा है।
फिर से विचार करें:
चुनाव के परिणामों के बाद, दलित और अन्य समूहों के वोट का बंटवारा और समीकरण कितना सही साबित होता है, यह देखना होगा। मायावती के इस फैसले से चुनाव प्रचार में कैसे उतरती है, इससे भी विश्लेषण करना महत्वपूर्ण होगा।